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मोबाइल फोन की दुनिया ने बहुत से कामों को आसान कर दिया लेकिन ये अभिभावकों के साथ बच्चों मानसिक रूप से बीमार कर रही है। ज्यादा फोन का असर उनके व्यवहार में भी झलकने लगा है। जिसकी शिकायत लेकर अभिभावक मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों के पास पहुंच रहे हैं। फोन ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों में कंडक्ट डिसऑर्डर, डिप्रेशन, ओडीडी, ओवर थिंकिंग [OVER THINKING]जैसे मामले सामने आ रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों के पास प्रत्येक दिन 9 से 10 मामले आ रहे हैं।|
लेकिन इस समय सिर्फ बच्चों की नहीं अपितु अभिभावकों की भी शिकायतें मनोचिकित्सकों के पास आ रही। मनोचिकित्सक का कहना है कि फोन ज्यादा प्रयोग करने से बच्चों में बहुत सी शारीरिक व मानसिक दिक्कतें आ रही हैं। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा गलती जो है वो अभिभावकों की देखने को मिल रही है। (Parents) पेरेंट्स खुद तो एक मिनट भी फोन छोड़ना पसंद नहीं करते और उम्मीद करते है कि बच्चे सुधर जाएं। लेकिन बच्चे जो आसपास देखते हैं वही अपने व्यक्तित्व में शामिल करते हैं।|
मामला- 1
शहर के 14 वर्षीय किशोर को लेकर अभिभावक मनोवैज्ञानिक के पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि बच्चा इन दिनों ज्यादा हाइपर होने लगा है। जिसके कारण अपने छोटे बहन-भाइयों को मारता है। वहीं परिवार में बड़ों [Members]सदस्यों को आंखें दिखाने लगा है। जब उसकी काउंसलिंग[COUNSLING] की तो पाया कि उसे ओडीडी, ऑप्शनल डेसीनेट डिसऑर्डर है जो फोन को ज्यादा यूज करने से हुआ है|
मामला – 2
शहर की 16 वर्षीय किशोरी को अभिभावक काउंसलिंग के लिए पहुंचे। अभिभावकों ने बताया कि बच्ची ने पढ़ाई करने से मना कर दिया है और गुमसुम रहती है। काउंसलिंग के दौरान पता लगा कि मोबाइल[Mobile] फोन के ज्यादा प्रयोग से किशोरी का मानसिक विकास रुक गया और वह आभासी दुनिया में जीने लगी। बच्ची अपने कॅरिअर को लेकर इतना ज्यादा सोचने लगी है जिसके कारण वो पढ़ाई से डरने लगी है।
मामला – 3
एक केस में पाया गया कि बच्चा कमरे में कैद होकर बैठ जाता है। सुबह से लेकर शाम तक बाहर नहीं आता है। पूरा दिन मोबाइल फोन चलाता है। खाना भी खाता है तो फोन को हाथ में लेकर खाता है। अगर फोन हाथ से ले तो चिल्लाने व रोने लगता है। इस प्रकार के व्यवहार को फोन एडिक्शन कहते हैं।|
मामला- 4
मनोचिकित्सक के पास अभिभावक शिकायत लेकर आए। उन्होंने बताया कि बच्चे इर्द गिर्द घूमते रहते हैं। जवाब नहीं देता है। फोन लेते हैं तो चिल्लाकर दूर जाने को कहता है। जब बच्चे की काउंसलिंग [Counsling]की गई तो उसने बताया कि माता-पिता [Parents]भी ऐसे ही करते हैं। मम्मी-पापा भी जब फोन चला रहे होते हैं। तो मैं उनके पास जाता हूं। उनके आसपास घूमता हूं। लेकिन मम्मी-पापा डांट कर भगा देते हैं।
हमारे पास अभिभावक बच्चों की शिकायतें[Complaint]लेकर आते हैं। क्योंकि आज पेरेंट्स में भी सहनशीलता नहीं रही है। अब समय ये है कि अभिभावकों को स्वयं पर काम करना होगा। इसके बाद बच्चों पर। पेरेंट्स ये सुनिश्चित करें कि रात 9 बजे के बाद फोन[Phone] को हाथ तक न लगाएं। फोन के अलावा दूसरा विकल्प बच्चों को ढूंढकर दें। बहुत से केस ऐसे हैं जिनके अभिभावक बच्चों की शिकायतें लेकर आते हैं। लेकिन काउंसलिंग[Complaint] में पता चलता है कि असल में गलती अभिभावकों की है – पंकज शर्मा, मनोचिकित्सक, सिविल अस्पताल।|
एक्सपर्ट व्यू
ये बात सही है कि बच्चे फोन का इस्तेमाल ज्यादा करने लगे हैं। जिसके कारण बच्चों में बहुत सी मानसिक बीमारियां पनप रही हैं। लेकिन इसमें अभिभावकों पर काम करना होगा। बच्चों को फ्री हैंड न छोड़े। अभी छुट्टियां है तो उनके साथ समय बिताएं। फोन के ज्यादा प्रयोग से बच्चे चिड़चिड़े, आक्रामक, फोन के आदी हो गए हैं। बहुत से केस में सामने आया है कि बच्चे सुबह उठते ही फोन को हाथ में लेते हैं। बाद में कुछ और क्रियाएं करते हैं। इस नेचर को फोन का एडिक्ट कहते हैं।
-रविंद्र पुरी, प्राध्यापक, मनोविज्ञान विभाग।